एक परिचय - डा. कुलपति तिवारी, महंत काशी विश्वनाथ मंदिर
दस जनवरी सन् 1954। सौरमंडल में ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति विशिष्टताओं से परिपूर्ण थी। सृजन और जीवन की दृष्टि से राशियों का चक्र भी विशेष कोण बना रहा था। विषमताओं को समता की ओर प्रवृत्त करने वाली ज्योतिषीय परिस्थितियों में काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत पं. महावीर प्रसाद तिवारी के आंगन में एक बालक ने जन्म लिया। पुत्र रत्न की प्राप्ति से पिता डा. कैलाशपति तिवारी और माता रामा देवी के हर्ष का ठिकाना न रहा। जतन पूर्वक बालक का लालन पालन किया जाने लगा। शुभमुहूर्त के अनुसार उचित समय पर नामकरण संस्कार किया गया।
बालक की वैभवशाली जन्मकुंडली देखकर दादा ने कुलपति नाम दिया।
चार वर्ष की अवस्था में बसंत पंचमी की तिथि पर बाबा विश्वनाथ का तिलकोत्सव और कुलपति तिवारी का शिक्षारंभ संस्कार विश्वनाथ मंदिर के ठीक सामने स्थित महंत आवास में एक साथ हुआ। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लिए समर्पित किए जाने के बाद अब वह भवन इतिहास का हिस्सा हो चुका है।
छह वर्ष की उम्र में कालिकागली स्थित श्रीविश्वनाथ सनातन प्राथमिक विद्यालय से आधुनिक शिक्षा विधिवत आरंभ हुई। यहां कक्षा पांच तक की शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत कुलपति तिवारी ने काशी के कमच्छा स्थित सेंट्रल हिंदू स्कूल (सीएचएस) में प्रवेश लिया।
गंगा नदी के किनारे गंगा आरती सबसे प्रसिध है।
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रंगभरी एकादशी, काशी में इसी दिन से होती है होली कि शुरुआत।
काशी विश्वनाथ मंदिर - महंत निवास
दस जनवरी सन् 1954
दादा ने कुलपति नाम दिया।
कक्षा छह से दस तक की परीक्षा में प्रतिवर्ष सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी का तमगा हासिल करने वाले कुलपति तिवारी ने उस दौर में काशी हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा ली जाने वाली एडमीशन की परीक्षा उत्तीर्ण की और सीएचएस से सीधे काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र हो गए।
बीकॉम. और एमकॉम. करने के बाद भी सामाजिक सूत्रों को समझने की जिज्ञासा शांत करने के लिए कुलपति तिवारी ने समाजशास्त्री विषय से एमए. किया। इतने से भी मन नहीं भरा और शोध करने की तैयारी कर ली। यहां उल्लेखनीय है कि जिस प्रकार उनके जन्मकाल में ग्रहीय स्थितियां दुर्लभ थीं ठीक उसी प्रकार उन्होंने शोध के लिए विषय भी दुर्लभ ही चुना।
पं. कुलपति तिवारी से डॉक्टर कुलपति तिवारी बन गए
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में धर्मशास्त्र के प्रकांड विद्वान प्रो. सत्येंद्र त्रिपाठी के मार्गदर्शन में ‘श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर की संरचना और प्रकार्य’(धर्म के समाजशास्त्र के अंतर्गत एक शोध) विषय पर इकलौता शोध करके डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और पं. कुलपति तिवारी से डॉक्टर कुलपति तिवारी बन गए।
इसी बीत पिता डॉक्टर कैलाशपति तिवारी ने, कुलपति तिवारी को सामवेद के दस अक्षर वाले मंत्र से दीक्षित भी किया। यह वही दीक्षित मंत्र है जिसकी परंपरा सन 1659 से लिंगिया पं. नारायण महाराज के समय से महंत परिवार में चली आ रही है।
सात मार्च 1993 को पिता डा. कैलाशपति तिवारी की असामयिक मृत्यु के उपरांत काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत का दायित्व आप के कंधों पर आया। महंत की गद्दी पर आसीन होने के बाद आप ने विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी लोक परंपराओं पर आधारित वार्षिक आयोजनों को और भव्यता प्रदान की। सावन मास में पूर्णिमा तिथि पर काशी विश्वनाथ के झूलनोत्सव, दीपावली के अगले दिन होने अन्नकूट पर्व, बसंत पंचमी पर बाबा विश्वनाथ के तिलकोत्सव, महाशिवरात्रि पर विवाहोत्सव और अमला एकादशी पर बाबा के गवना के उत्सव पर काशी विश्वनाथ मंदिर में निभाई जाने वाली परंपराओं का निर्वाह तब से अनवरत करते आ रहे हैं।
वर्तमान में सवर्ण समाज संगठन के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक और कौमी एकता परिषद के मार्गदशक पद को सुशोभित करते हुए डा. कुलपति तिवारी दर्जनों धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संगठनों के संरक्षक,मार्गदर्शक,अध्यक्ष आदि पदों की शोभा बढ़ा रहे हैं।